Sunday, January 11, 2009
नमन
भोर का आगमन, रश्मियों का नमन, मुस्कुराता गगन इस धरा के लिए।
गंध का निर्गमन, हर कली निर्वसन, गुनगुनाता पवन इस धरा के लिए।।
नीम की पत्तियां कँपकँपाती हुईं,
खेत पानी भरे लहलहाते हुए।
फूल से तितलियां रस चुराती हुईं,
गीत गाते हुए खग जवानी भरे।।
धूप का बाँकपन,डालियों की फबन, दूर बादल सघन इस धरा के लिए।
भोर का आगमन.....
मध्य तालाब के झूमती शाख पर,
एक पक्षी कि जैसे तपस्वी सुभग।
छप्परों से निकलता हुआ धुआं,
कर रहा हो हवन ज्यों कि साधु सजग।।
गैल पनघट मगन, गोरियों के बदन, पायलों की छनन इस धरा के लिए।
भोर का आगमन......
हल लिए बैल घुंघरू बजाते हुए,
धूल उड़ती हुई स्वच्छ आकाश में।
तन छुपाए श्रमिक शहर जाते हुए,
आस्थाएं कसे स्वस्थ्य भुजपाश में।।
नित्य-नूतन सृजन, मुक्त चिन्तन-मनन, भव्यता का भुवन इस धरा के लिए।
भोर का आगमन......
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