ग़ज़ल
कमरे में सजा रक्खा है बेजान परिन्दा।
ये देख रहा खिड़की से हैरान परिन्दा।।
उड़ जाए तो फिर हाथ नहीं आए किसी के।
होता है कुछ इस तरह का ईमान परिन्दा।।
जिस लम्हा उदासी में घिरा होगा मिरा दिल।
आँगन में उतर आएगा मेहमान परिन्दा।।
साथी से बिछड़ने का उसे ग़म है य़कीनन।
उड़ता जो फिरे तन्हा परेशान परिन्दा।।
कब कौन बला अपने शिकंजे में जकड़ ले?
रहता नहीं इस राज से अन्जान परिन्दा।।
तर देख रहा बाजू-ओ-पर अपने लहू में।
समझा था क़फस तोड़ना आसान परिन्दा।।
ले आएगा क्या जाके मिरे यार की चिट्ठी।
कर पाएगा क्या मुझपे' ये अहसान परिन्दा।।
इस शाख से उस शाख पे' हसरत में समर की।
क्यों बैठ के होता है पशेमान परिन्दा।।
हम तक भी चली आएंगी खिड़की से हवाएं।
'सर्वेश' करे पैदा तो इम्कान परिन्दा।।
संपर्क : 9210760586
Monday, January 12, 2009
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3 comments:
बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण रचना। बधाई
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
कमरे में सजा रक्खा है बेजान परिन्दा।
ये देख रहा खिड़की से हैरान परिन्दा।।
उड़ जाए तो फिर हाथ नहीं आए किसी के।
होता है कुछ इस तरह का ईमान परिन्दा।।
जिस लम्हा उदासी में घिरा होगा मिरा दिल।
आँगन में उतर आएगा मेहमान परिन्दा।।
भावपूर्ण रचना है badhaaee
जिस लम्हा उदासी में घिरा होगा मिरा दिल।
आँगन में उतर आएगा मेहमान परिन्दा।।
साथी से बिछड़ने का उसे ग़म है य़कीनन।
उड़ता जो फिरे तन्हा परेशान परिन्दा।।
khubsurat ashaar mubrak ho sarveshjee.dua hai aap aisa hi likhte rahe
bezar dehlvi
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