Sunday, January 25, 2009

पाँच मुक्तक

धड़कनों का साज देती रह गई।
हर नया अंदाज देती रह गई।।
वक्त का रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।

घर के टूटे बरतनों को बेचकर।
वो दवा बच्‍चे की लाया शहर से।।
इल्म तक उसको नहीं लख्‍त़े-जिगर।
मर गया नकली दवा के कहर से।।

शाख़ों पे सब्ज रंग के पत्ते नहीं रहे।
गुलशन में जोर-शोर से आंधी अब आके देख।।
तेरे उसूल खून के आँसू बहा रहे।
हालात अपने देश के गाँधी अब आके देख।।

कल की जाने दो, आज बदला है।
तख्‍त बदला है, ताज बदला है।।
जािलमो! होशियार हो जाओ।
मुंसिफों का मिजाज बदला है।।

चाँदनी की पलकों पर किसके ख्वाब ठहरे हैं।
झील के किनारों से आओ पूछ कर देखें।।
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।

संपर्क : 9210760586


5 comments:

Udan Tashtari said...

चाँदनी की पलकों पर किसके ख्वाब ठहरे हैं।
भील के किनारों से आओ पूछ कर देखें।।
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।

-बहुत उम्दा रचना!!

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा लिखा...बधाई।

Bezardehlvee said...

मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
achha aur sachha hai.khubsurat andaz hai mubarak.

वक्त रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।
wakt aur zindgee.dono ko achee tarah sajaya hai.bhutmubark.BezarDehlvi

Anonymous said...

मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
achha aur sachha hai.khubsurat andaz hai mubarak.

वक्त रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।
wakt aur zindgee.dono ko achee tarah sajaya hai.bhutmubark.BezarDehlvi

Anonymous said...

sabhee muktak aaj ke samay me sahee
darpan dikhate hai.hardik badhai