पाँच मुक्तक
धड़कनों का साज देती रह गई।
हर नया अंदाज देती रह गई।।
वक्त का रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।
घर के टूटे बरतनों को बेचकर।
वो दवा बच्चे की लाया शहर से।।
इल्म तक उसको नहीं लख्त़े-जिगर।
मर गया नकली दवा के कहर से।।
शाख़ों पे सब्ज रंग के पत्ते नहीं रहे।
गुलशन में जोर-शोर से आंधी अब आके देख।।
तेरे उसूल खून के आँसू बहा रहे।
हालात अपने देश के गाँधी अब आके देख।।
कल की जाने दो, आज बदला है।
तख्त बदला है, ताज बदला है।।
जािलमो! होशियार हो जाओ।
मुंसिफों का मिजाज बदला है।।
चाँदनी की पलकों पर किसके ख्वाब ठहरे हैं।
झील के किनारों से आओ पूछ कर देखें।।
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
संपर्क : 9210760586
Sunday, January 25, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
चाँदनी की पलकों पर किसके ख्वाब ठहरे हैं।
भील के किनारों से आओ पूछ कर देखें।।
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
-बहुत उम्दा रचना!!
बहुत अच्छा लिखा...बधाई।
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
achha aur sachha hai.khubsurat andaz hai mubarak.
वक्त रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।
wakt aur zindgee.dono ko achee tarah sajaya hai.bhutmubark.BezarDehlvi
मौत की तमन्ना को किस तरह सजाया है।
जिन्दगी के मारों से आओ पूछ कर देखें।।
achha aur sachha hai.khubsurat andaz hai mubarak.
वक्त रथ रुक नहीं पाया कहीं।
जिन्दगी आवाज देती रह गई।।
wakt aur zindgee.dono ko achee tarah sajaya hai.bhutmubark.BezarDehlvi
sabhee muktak aaj ke samay me sahee
darpan dikhate hai.hardik badhai
Post a Comment