Monday, February 2, 2009

चंद मतले


मुट्ठियों में काँच के टुकड़े दबाकर देखिये।
जब लहू रिसने लगे तो मुस्करा कर देखिये।।

चेहरा लहू-लहू तो बदन चूर-चूर था।
खुददार आदमी था फ़कत ये कुसूर था।।

चेहरा बदल, लिबास बदल, आईना बदल।
इन सबसे पहले सोच का तू जाविया बदल।।

ईमान का, जमीर का सौदा करेंगे हम।
हर रोज फिर तो मौत नई खुद मरेंगे हम।।

पहले दिलों से सोच, विषैली निकालिए।
फिर एकता के नाम पे रैली निकालिए।।

जलते हुए चरा़ग बुझाने से क्या मिला।
तुझ को हवा जुनून में आने से क्या मिला।।

प्यास होंठों पर सजी थी और नमी आँखों में थी।
जिन्दगी में जो कमी थी, वो कमी आँखों में थी।।

संपर्क : 9210760586

7 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन मतले..बहुत खूब!

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया लिखा है।बधाई।

पहले दिलों से सोच, विषैली निकालिए।
फिर एकता के नाम पे रैली निकालिए।।

सतपाल ख़याल said...

मुट्ठियों में काँच के टुकड़े दबाकर देखिये।
जब लहू रिसने लगे तो मुस्करा कर देखिये।।
bahut khoob ! adab ki khidmat ki liye ek blog humne bhi banaya hai. aap jaise shayiroN ki hame talash rahtee hai.ho sake to padhareN.
aajkeeghazal.blogspot.com

रंजना said...

Waah ! Sundar saarthak gazal.

Anonymous said...

प्यास होंठों पर सजी थी और नमी आँखों में थी।
जिन्दगी में जो कमी थी, वो कमी आँखों में थी।।

khubsurat alfaz me zindgee ko bayan kiya hai.Bhut hi achhe matle hai.mubarak

Yogesh Verma Swapn said...

मुट्ठियों में काँच के टुकड़े दबाकर देखिये।
जब लहू रिसने लगे तो मुस्करा कर देखिये।।
bahut khoob sabhi ek se badhkar ek. mubarak.

santara said...

JO JO BHI AAPKE HAIN EHSAAS.
HAIN WO HI SAB MERE BHI PAAS.
MAGAR ANDAZ-E-BAYAN HAI JUDA;
AAP YAKINAN HAIN KUCHH KHAAS.

''KYA KHOOB LIKHTE HAIN AAP''
...............SANTARA KHUSH.