Sunday, March 1, 2009

ग़ज़ल


आँखों ने ख्वाबों का हाल बुरा देखा।
'दौलत मंदों को कंगाल' बुरा देखा।।

आने वाला साल तो अच्छा देखेंगे।
माना हमने बीता साल बुरा देखा।।

करने से परवाज उसे डर लगता है।
शायद उसने कोई जाल बुरा देखा।।

एक जरासी लग्जिश परउस रहबर का।
सबने होते इस्त़कबाल बुरा देखा।।

सोते से जागे तो बस्ती वालों ने ।
आँखें मल-मल कर भूचाल, बुरा देखा।।

वो शै तो कमयाब थी, मैंने क्यों उसका।
लम्हा-लम्हा इस्तेमाल, बुरा देखा।।

जो मेरे चेहरे को सा़फ दिखाता था।
उस दरपन में मैंने बाल, बुरा देखा।।

अब्र फ़लक पर ऐसा छाया शाम ढले।
बिन तारों के शब का थाल, बुरा देखा।।

करता था आकाश की बातें जो 'सर्वेश'।
उसने खुद गिर कर पाताल बुरा देखा।।


संपर्क – 9210760586





6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बदल गयी हैं चाल ढाल सब,
बदल गयीं परवाजे हैं।
स्वर-लहरी भी बदल गयी है,
बदले बाजे-गाजे हैं।।

धनवानों को स्वप्न नही,
दुख के ही सपने आते हैं।
निर्धन खाना खा लेते हैं,
दौलतमन्द सकुचाते हैं।।

"अर्श" said...

bahot hi khubsurat gazal... jo saralata ke sath taralata se dil ki gaharai me apni jagah banati gai padhate wakt....

mere blog pe aapka khasa swagat hai nai gazal pe aapko nevta diyejaa raha hun....


arsh

मुंहफट said...

एक जरासी लग्जिश परउस रहबर का।
सबने होते इस्त़कबाल बुरा देखा।।
....बहुत अच्छी, अति सुंदर..वाह-वाह्ह

Vinay said...

बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने!

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

Bezardehlvee said...

आँखों ने ख्वाबों का हाल बुरा देखा।
'दौलत मंदों को कंगाल' बुरा देखा।।

आने वाला साल तो अच्छा देखेंगे।
माना हमने बीता साल बुरा देखा।।
khubsurat andaz-aane wale wakt-ko
bhut hi asrdar lafzo me pesh karne par badhai.naye sher isee tarh padhne ko milenge aisee ummid ke sath.aap ka abhar

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी,बधाई।
मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा लगेगा और अपने विचार जरूर दें।प्लीज....

हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी