Wednesday, February 25, 2009
ग़ज़ल
जंगे-हक़्क़ोबातिल का जो भी फ़ैस्ला होगा।
खुशगवार दुनिया का हाल तो बुरा होगा।।
जो नु़कूशे-पा अपने ताबनाक छोड़ेंगे।
मुन्तजिर उन्हीं का तो अब भी रास्ता होगा।।
सोचने से बेहतर है, देखने की कोशिश कर।
मेरा दिल यह कहता है, रूनुमा खुदा होगा।।
मुत्तफिक नहीं होगा, वो मेरी जरूरत से।
मुख्तलिफ अगर उसका मुझसे जाविया होगा।।
बेलिबास पेड़ों की सफ़ में और भी होंगे।
पेड़ खोखला पहले बा़ग में कटा होगा।।
हम ही उसके बारे में सोचते हैं, ऐसा कब?
कुछ हमारे बारे में वो भी सोचता होगा।।
आइना ह़की़कत का क्यों मुझे दिखाते हो?
सामने तुम्हारे भी कल ये आइना होगा।।
खून जो बहाते हैं, बेगुनाह लोगों का।
क्यों नहीं समझते वो जुल्म भी फ़ना होगा!!
बदगुमानियां इतनी बढ़ गई कि अब 'सर्वेश'।
आदमी का रहमत से तर्क सिलसिला होगा।।
संपर्क : 9210760586
Monday, February 2, 2009
चंद मतले
मुट्ठियों में काँच के टुकड़े दबाकर देखिये।
जब लहू रिसने लगे तो मुस्करा कर देखिये।।
चेहरा लहू-लहू तो बदन चूर-चूर था।
खुददार आदमी था फ़कत ये कुसूर था।।
चेहरा बदल, लिबास बदल, आईना बदल।
इन सबसे पहले सोच का तू जाविया बदल।।
ईमान का, जमीर का सौदा करेंगे हम।
हर रोज फिर तो मौत नई खुद मरेंगे हम।।
पहले दिलों से सोच, विषैली निकालिए।
फिर एकता के नाम पे रैली निकालिए।।
जलते हुए चरा़ग बुझाने से क्या मिला।
तुझ को हवा जुनून में आने से क्या मिला।।
प्यास होंठों पर सजी थी और नमी आँखों में थी।
जिन्दगी में जो कमी थी, वो कमी आँखों में थी।।
संपर्क : 9210760586
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